________________ 282 विक्रम चरित्र संहार होगा। पुष्प से भी युद्ध नहीं करना चाहिये यह नीति वचन है, तो फिर. तीक्ष्ण अस्त्र-शस्त्रों से युद्ध करने की बात ही क्या ? क्यों कि युद्ध में विजय का तो संदेह ही रहता है तथा उत्तम पुरुषों का नाश होता है। इस प्रकार का न्याय युक्त भट्टमात्र का वचन सुन कर के सब सुभट मानगये / अतः भट्टमात्र अत्यन्त प्रसन्न हुआ। फिर भट्टमात्र अपने नगर में आया तथा राजा विक्रमादित्य को आदि से अन्त तक सब वृत्तान्त कह सुनाया। यह सब वृत्तान्त सुन कर राजा ने कन्या को देखने के लिये दूसरे देश में मंत्री भट्टमात्र को भेजा। श्री विक्रमचरित्र द्वारा मंत्री के साथ भेजे गये दूत श्री विक्रमचरित्र को आकर मिले। उसको दूतों ने वहाँ के सब. समाचार कह सुनाया और बोले कि राजा महाबल की दिव्य रूपवती कन्या के समान संसार में दूसरी कोई भी उसप्रकार की मनोहर कन्या नहीं मिलेगी। अपने अनुचरों की ऐसी बात सुनकर उस कन्या में श्री विक्रमचरित्र को भी अनुराग हो गया / अपने मन की बात को गुप्त ही रख कर हँसते हुए वह बोले कि अंग, बंग तथा कलिंग आदि देशो में बहुतसी अत्यन्त दिव्यरूप वाली कन्यायें हैं / जो कन्या दूसरे को देदी गई है, उस कन्या से मुझे कोई प्रयोजन नहीं। मैं किसी दूसरे राजा की दिव्य रूप वाली कन्या से विवाह करूँगा। अन्यत्र खोज विक्रमचरित्र की बात सुनकर वे अनुचर लोग अपने अपने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org