________________ 284 विक्रम चरित्र तथा हाथ में खड्ग लेकर विक्रमचरित्र अवन्ती नगर से बाहर निकला तथा मनों वेग अश्व से कहा कि तुम ज्ञानवान् हो एवं कुशल हो, सब अच्छे लक्षणों से भी युक्त हो, तुम्हारी गति में अत्यन्त वेग है; इसलिये हे मनोवेग अश्व ! वल्लभीपुर जहा है वहाँ तुम मुझे शीघ्र पहुँचाओं। विक्रम चरित्र की बात सुनकर मनोवेग अश्वने शीघ्र ही वल्लभीपुर की और प्रस्थान किया। 'विक्रमचरित्र का वल्लभीपुर के प्रति गमन वह अश्व अत्यन्त वेग से नगर, ग्राम, नदी तथा पर्वतों को पार करता हुआ श्री विक्रमचरित्र को वल्लभीपुर ले आया। विक्रम चरित्र नगर के बाहर ठहर कर विचार करने लगा कि किसी भी पुरुष का कार्य उस स्थान के किसी व्यक्ति को सहायक बनाये बिना सिद्ध नहीं होता, यह विचार कर विक्रमचरित्र स्थान स्थान पर नगर की अपूर्व शोभा को देखता हुआ नगर में घूमने लगा / और मन ही मन नगर कि शोभा देखकर उसकी सुन्दरता से खुश हो रहा था / इस प्रकार नगर में घूमते हुए 'श्रीदत्तनाम' के श्रेष्ठी के घर के पास आ पहुँचा / वहाँ उसकी पुत्रीने गवाक्ष से अश्वारुढ विक्रमचरित्र को देखा, विक्रमचरित्र को देखकर उस के रूप से मोहित होकर वह अपनी सखी से कहने लगी कि अत्यन्त सुन्दर इस पुरुष को तुम शीघ्र बुलाकर यहाँ लाओ। श्रेष्ठी कन्या लक्ष्मी के कहने पर उसकी सखी विक्रमचरित्र को मधुर शब्दों द्वारा बुला कर ले आई। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org