________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 271 होगा। बारह वर्ष पर्यन्त अबधूत के वेष में गुप्त रह कर खूब तप करो अंत में किसी राजा को जनधर्म का उपदेश करो। तब तुम्हारा पाप से छुटकारा होगा अन्यथा नहीं / ' अवधूत वेष में श्री सिद्धसेनसूरीश्वरजी अपने गुरुदेव के दिये हुए प्रायश्चित्त को हृदय से ग्रहण कर वहाँ से चल दिये / अवधूत के वेष में निरन्तर स्थान स्थान पर भ्रमण करने लगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org