________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 275 में ' वल्लभीपुर ' नाम का एक बड़ा सुन्दर नगर है / वहाँ पराक्रमी 'महाबल' नामक राजा है / उनकी स्त्री का नाम 'वीरमती' है। उसी की दिव्य रूप तथा शोभा वाली 'शुभमती' नाम की कन्या है / वह सकल विद्याओं में पारंगत है तथा युवावस्था को प्राप्त हुई है / वह युवकों के मन को मोहने वाली है और वह कन्या सब कलाओं में कुशल और अत्यन्त धर्मशीला है / '-- ___ आहार, निद्रा, भय, मैथुन ये सब पशु-तथा मनुष्यों में समान हैं / केवल धर्म ही मनुष्य में विशेष है। जिस मनुष्य में धर्म नहीं है वह पशु के समान है / विद्या मनुष्यों का सर्वश्रेष्ठ रूप है / विद्या अत्यन्त गुप्त-धन है / विद्या ही अत्यन्त श्रेष्ठ धन और साथ ही साथ भोग देने वाली है / यशः और सुख को देने वाली विद्या ही है / विद्या गुरुओं की भी गुरु है / विदेश गमन करने पर विद्या बन्धु के समान सहायता करती है / विद्या ही उत्कृष्ट देवता है / राजा विद्या के ही प्रभाव से पूजित होता है / धन के प्रभाव से पूज्य नहीं हो सकता / अतः जो विद्या से रहित है वह मनुष्य मानों पशु के ही समान है।+ शुभमती में धर्म और विद्या दोनों समान रूप से विद्यमान हैं। उस शुभमती के योग्य वर अनेक देशों में और चारों दिशाओं में + आहार-निद्रा-भय-मैथुनंच, सामान्यमेतत्पशुभिर्नराणाम् / ___ * धमों हि तेषामधिको विशेषो, धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः // 202 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org