________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 241 wmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm - वेश्या की बात सुन कर उस चोर ने पुनः कहा कि 'तुम कुछ भय मत रखो तथा शीघ्र जाकर पटह स्पर्श करो। तुम्हारा कल्याण होगा।' चोर के आश्वसन देने पर वेश्या ने मार्ग पर आकर शीघ्र ही बजते हुए पटह का स्पर्श किया / सेवकों ने जाकर राजा से सारा हाल कह सुनाया और कहा कि 'काली वेश्याने पटह का स्पर्श किया है / ' राजा ने यह सुन कर भट्टमात्र आदि सचिवों से विचार विनिमय किया कि 'वेश्या को किस प्रकार आधा राज्य दिया जायगा ?' यह सुन कर मंत्रीगण बोले कि 'इस में खेद करने की कोई बात नहीं है। जब अपने घर में वस्त्राभूषण आदि सब वस्तुएं आ जावें, तथा दुर्निवार चोर अपने हाथ में आ जाय तो. उस दुष्ट चोर का निग्रह करके जनता को सुखी बनावे, तत्पश्चात् उस वेश्या से भी विवाह कर लें। इस प्रकार राज्य का आधा हिस्सा जो उसे देना है वह अपने ही घर में रह जायगा।' मंत्रियों की बात सुन कर राजा ने कहा कि 'हीन जाति से कैसे विवाह करेंगे। मंत्रियों ने उत्तर दिया कि-'हीन जाति की स्त्री से भी विवाह करने से राजाओं को दोष नहीं लगता। क्योंकि शास्त्र में कहा है कि विष में से भी अमृत ले लेना चाहिये / अमेध्य-अपवित्र वस्तु में से भी सुवर्ण लेना चाहिये / अधम मनुष्य से भी उत्तम विद्या लेनी चाहिये और नीच जाति से भी स्त्री रत्न ले लेना चाहिये / '* ... ' राजा के सम्मत होने पर मंत्रियों ने उसी समय उस वेश्या को बुलाने * विषादप्यमृतं ग्राह्यममेध्यादपि काञ्चनम् / - अधमादुत्तमा विद्यां स्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि // 66 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org