________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 249 विक्रमचरित्र की बात सुनकर राजा बोले- मुझे बार धार धिक्कार है, जो मैंने सुकोमला जैसी स्त्री से विवाह कर के छल से उसका परित्याग कियो यह मैंने ठीक नहीं किया। राजा को इस प्रकार खेद करते देख कर विक्रमचरित्र ने कहा-“हे पिताजी ! इस में आपका कोई दोष नहीं। यह सब कर्म का ही फल है। प्रत्येक प्राणी अपने पूर्व कृत कर्म का ही फल भोगता है।" विक्रमचरित्र का प्रतिष्ठानपुर गमन ___ तत्पश्चात् विक्रमचरित्रने अपने पिता के चरणों में भक्ति पूर्वक प्रणाम कर के प्रतिष्ठानपुर की ओर प्रस्थान किया। क्रम से विक्रमचरित्र ने प्रतिष्ठानपुर पहुँच कर अपने आगमन से अपनी माता के हृदय में अत्यन्त हर्ष उत्पन्न किया और अपनी माता के तथा शालि. वाहन राजा के चरणों में प्रणाम कर पिता से मिलने का सब वृत्तान्त कह सुनाया, फिर अपनी माता को लेकर शीघ्र ही विक्रमचरित्र अवन्ती नगर के समीप उपस्थित हुआ। माता को साथ लेकर आना ___ राजा विक्रमादित्य अपनी स्त्री तथा पुत्र का आगमन सुन कर उसी समय नगर के बाहर आये और महोच्छव पूर्वक अपनी स्त्री और पुत्र का नगर प्रवेश कराया और उसे रहने के लिए सात मॅजिला महल दिया। विक्रमादित्य स्त्री तथा पुत्र के साथ आनंद से अपना समय बिताने लगे और न्याय पूर्वक राज्य शासन करने लगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org