________________ 255 मुनि निरंजनविजयसंयोजित उस मृतक की यह बात सुनकर राजा अपने मनमें आश्चर्य चकित होकर सोचने लगे कि दुष्ट बुद्धि दुर्जन लोग व्यर्थ ही अपनेजन्म को नष्ट कर देते हैं। एक जन्म के सुख के लिये मूर्ख लोग प्रतिदिन छल कपट करते हैं और उसके कारण लाखों जन्मों का व्यर्थ ही नाश कर देते हैं / सुन्दर कर्मों में सतत मम रहने वाले सज्जन पुरुष शान्ति से ही वश में आते हैं। पर दुर्जन लोग बलात्कार करने से ही मानते हैं / सर्प बराबर दूध ही पिये तो भी मुँह से विष वमन ही करेगा / पर महौषधि के प्रयोग करने से वही सर्प कमल की रज के समान शीतल हो जाता है। यह योगी मेरा क्या कर सकता है ? यदि वह कुछ बुरा करना भी, चाहेगा तो मैं समयोचित कार्य करूँगा / क्योंकि बुद्धिमान व्यक्ति बीते हुए समय की चिन्ता नहीं करते तथा जो होने वाला है उसकी भी चिन्ता नहीं करते, केवल वर्तमान काल के अनुसार ही व्यवहार करते हैं / यह सोच कर राजा ने उस शब को अपनी पीठ पर लेकर धूर्त योगीराज के समीप उपस्थित हुआ / मृतक को लाया हुआ देख कर योगीराज-अत्यन्त प्रसन्न हुआ। फिर उसने राजा से कहा कि ' मैं तुम्हारा शिखाबन्धन करता हूँ, जिससे होम करने में कोई विघ्न आकर खड़ा न होगा / फिर राक्षस, व्यन्तर, प्रेत-भूत और xमतीतं नैव शोचन्ति, भविष्यं नैव चिन्तयेत् / बर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विषक्षणाः // 57 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org