________________ एक वीर नाम का श्रेष्ठी था। उसकी स्त्री का नाम वीरमती था। वीर श्रेष्ठी की विधवा माता का नाम जया था / उस वृद्धा की सेवा न पुत्र करता था और न उसकी स्त्री करती थी। इसलिये वह वृद्धा मन ही मन दुःखी रहा करती थी। जब स्त्री के सन्तान हो जाती हैं, तब वह पति से ही द्वेष करने लगती है / पुरुष जब विवाह कर लेता है, तब वह माता से द्वेष करता है / सेवक का जब प्रयोजन या स्वार्थ सिद्ध हो जाता है तब वह स्वामी से द्वेष करने लगता है। रोग मीट जाने पर लोग वैद्य से भी द्वेष करने लगते हैं / स्वेच्छा भ्रमण करने के लिये प्रतिदिन कुटिल चित्त वाली वह पापात्मा पुत्रवधु बीरमती एकान्त में वृद्ध सासू को मारने की इच्छा करती थी। एक दिन किसी पर्व के अवसर पर उसे वृद्धा सासू ने पुत्रवधू से कहा कि बाजार में जाकर काष्ठ, गोधूम आदि ले आओ। प्रातःकाल पर्व है, इसलिये पक्वान्न आदि बनायेंगें। वह वधू बाजार में जाकर हृदय से दुःखी होती हुई गद्गद स्वर से अपने पति वीर श्रेष्ठी से बोली कि–'तुम्हारी माता वृद्धावस्था तथा रोग से अत्यन्त पीडित होने के कारण काष्ट भक्षण करना चाहती है।' यह बात सुन कर वीर श्रेष्ठी चिन्ता से आहत होकर तुरत ही 'घर पर आया और अपनी माता से बोला कि 'हे माता!तुम काष्ठ भक्षण क्यों करना चाहती हो ? मैं तुम्हारे बिना इस समय किस प्रकार रह सकूँगा / ' उस वृद्धा ने अपने मन में विचार किया कि पुत्रवधू ने कपट कर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org