________________ विक्रम चरित्र mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm शीघ्र ही आकर चुप चाप दरवाजा खोल देना। .. वह वेश्या बोली कि ' हे चोर ! निश्चिन्त होकर तुम नगर में जाओ। जब आकर तुम दरवाजा खटखटाओगे तब तुम जैसा कहते हो, वैसा ही करूंगी। वेश्या के इस प्रकार कहने पर वह अत्यन्त प्रसन्न होकर वेश्या के घर से निकल गया और निर्भय होकर नगर को देखने लगा। वह नगर के मध्य में घूम घूम कर स्थान स्थान में कौतुक देखने लगा। सिंहको भुलावे में डालना कोटवाल को भ्रम में डालने के लिये देवकुमार अपने मन में विचार करने लगा और उन स्थानों को देखने लगा / कार्पाटक (क.पाय वस्त्र धारण कर यात्रा करने वाला) के घर से कावडिक लेकर तीर्थयात्रा करने वाले के समान बनकर देवकुमार घूमते घूमते नगर के पूर्व द्वार पर आ पहुँचा तथा उस कोटवाल का क्षुधा-भूख से पीडित शरीर देखकर उस के सन्मुख गया। वह उससे मिला तथा उसे मामा कह कर कपटी-तीर्थ-यात्री चोर ने उस को प्रणाम किया। उस कपटी तीर्थ यात्री चोर के आकार, वर्ण और स्वरूप देखकर यह मेरा भानज श्यामल ही है, ऐसा समझ कर कोटवाल ने उसको पूछा कि 'तुमने किस किस तीर्थ की यात्रा की; वहाँ का सब समाचार सुनाओ। तब वह कपटी भानजा चोर-देवकुमार बोला कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org