________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 193 से शीघ्र ही सब वस्त्र लाकर हम लोगों को दो। जिस से वस्त्र धारण कर हम सब बाहर निकल सके।' कोटवाल को मूर्छा इस प्रकार की उन लोगों की बात सुन कर उन को पहनने के लिए वस्त्र देकर जब वह दूसरे घर में भानजे को खोजने लगा, तब देखा कि भानजा श्यामल तथा सब सम्पत्ति दोनों ही घर से गायब हैं। तत्र व्याकुल हृदय होकर कोटवाल अपने मन में सोचने लगा कि " वह महा धूर्त इस समय मेरी सम्पत्ति हरण कर के ले गया है और धर्म के बहाने से उस ने मुझे ठग लिया है। इस प्रकार सोचता हुआ कोटवाल पृथ्वी पर गिर पड़ा और मूर्छा से बेहोश हो गया। उसके मूर्छित होते ही उसके सब परिवार के लोग बाहर निकल कर वहाँ आ पहुँचे तथा -- चोर सब धन छल से लेकर चला गया है / इस प्रकार का उन लोगों का शब्द घर के बाहर रहे हुए कोटवाल के सेवकोंने सुना तो विना समझे ही तथा 'चोर चोर' करते हुए वे सेवक राजा के समीप पहुँचे और राजा को कहा कि ' अपने घर में प्रवेश किये हुए चोर को कोटवाल ने पकडा है, परन्तु वह क्रूरात्मा बलवान् चोर कोटवाल का सामना कर रहा है / इसलिये चोर को पकड़ने के लिये आप शीघ्र व्यवस्था कीजिये / इस प्रकार की सेवकों की बात सुनकर राजा शीघ्र ही कोटवाल के घर पहुँचे / कोटवाल को दुःख से मूर्च्छित हो पृथ्वी पर चेष्टा रहित पडा हुआ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org