________________ 192 विक्रम चरित्र प्रसन्न होकर बोलने लगाः-“हे कोटवाल! तुम अपने घर जाओ। इस में तुम्हारा कुछ भी दोष नहीं है। चोर सब प्रकार से सुरक्षित तथा विषम स्थान में प्रवेश कर के चुपचाप मेरे सब वस्त्राभूषणों को लेकर रात्रि में कहीं चला गया, उसे तुम अत्यन्त भ्रमण तथा पूर्ण रीती से खोजने पर भी कैसे पकड़ सकते हो / इसलिये तुम मेरी तरफ से निर्भय होकर अपने घर जाओ। दुर्बलों का, अनाथों का, बालक, वृद्ध, तपस्वी इन सब व्यक्तियों का तथा अन्याय से जो कष्ट प्राप्त कर रहा हो, इस प्रकार के व्यक्तियों का राजा ही गुरु है। राजा की आज्ञा का पालन न करना, ब्राह्मणों की जीविका को नष्ट करना, अपनी स्त्री को पृथक् शय्या देना—ये सब बिना शस्त्र के वध कहे गये हैं। इसलिये तुम मेरी आज्ञा का पालन करने मात्र से निर्दोष हो।" इस प्रकार की राजा की बात सुन कर कोटवाल प्रसन्न हुआ तथा राजा को प्रणाम कर के अपने घर पर पहुँचा / वहाँ अपनी स्त्री को सम्बोधित कर के बोलाः "हे प्रिये ! मुझको पाँव धोने के लिये जल दो।" कई बार ऐसा कहने पर भी जब उस की स्त्री ने कुछ उत्तर नहीं दिया, तब कोटवाल अपनी भगिनी-बहन सोमा से बोला कि 'इस समय तुम लोग मुझ से कुछ बोलते क्यों नहीं हो।' इस प्रकार पुनः पुनः कहने पर सोमा ने उत्तर दिया कि मैं इस समय विना वस्त्र के ही बोरे के अन्दर रही हूँ।' तब कोटवाल ने पूछा कि ' भानजा श्यामल कहाँ है ?' तब उन लोगों ने उत्तर दिया कि वह सब धन तथा हम लोगों के वस्त्र आदि लेकर गुप्त स्थान में रख कर स्वयं भी इस समय कहीं छिपा होगा / अतः तुम प्रथम अपने भानजे श्यामल के पास Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org