________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 231 किस प्रकार-राजा की सब चीजें हरण की / " तब देवकुमार ने उसे आदि से अन्त तक का सब वृत्तान्त कह सुनाया। यह सब वृत्तान्त सुन कर वेश्या बोली कि 'तुम निश्चय ही चोर शिरोमणि हो / स्वयं राजा की ही वस्त्रादि चीजें लेकर चुपचाप यहाँ चले आये हो / परन्तु यदि राजा यह जान जायगा कि तुम मेरे यहाँ रहते हो तो वह उसी क्षण मुझ को घानी में डालकर टुकड़े टुकड़े करा देगा / क्रुद्ध हुए राजा का निवारण कौन कर सकता है ? उस समय राजा प्रलय काल के समुद्र समान दुर्वार हो जाता है। वेश्या की भययुक्त बात सुन कर उसको आश्वासन देता हुआ चोर बोला कि 'तुम अपने मन में कुछ भी भय मत रखो मैं वैसा ही काम करूँगा जिससे मेरा तथा तुम्हारा कल्याण ही होगा। तुम बार बार इस प्रकार संकल्प-विकल्प मत करो / जो भावी होता है, उसको देवता लोग भी दूर नहीं कर सकते / ' उसे इस प्रकार समझा कर भय रहित किया / ___जब राजा विक्रमादित्य ने कूप में प्रवेश किया और अच्छी तरह खोजने पर उस में उसे एक बहुत बड़ा पत्थर मिला, तो वह चकित होकर अपने मन में विचार करने लगा कि " पत्थर के गिराने से उस छली दुरात्मा ने मुझे कूप में उतरने को बाध्य किया / अब क्या करूँ ? / हर एक प्राणी अपने पूर्व भवों में किये हुए कर्मों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org