________________ 206 विक्रम चरित्र होती है। परन्तु हृदय उनका कैंची के समान होता है, जो समय पाकर लोगों को कष्ट देता है। यही धूर्त का लक्षण है / दुर्जन से बोला गया अत्यन्त मधुर वचन भी अकाल में खिले हुए पुष्प के समान अत्यन्त भय का उत्पादक होता है / चोर, चुगली करने वाला, दुर्जन, भ्रष्ट, वेश्या, अतिथि, नर्तक, धूर्त और राजा--ये सब दूसरों के दुःख को नहीं समझते। __अतः हे भट्टमात्र ! इस में तुम्हारा दोष नहीं है / उस दुष्ट चोर ने तो कोटवाल को तथा मुझ को भी दुःख सागर में डूबा दिया है। तुम ने सब प्रकार से मेरी आज्ञा का पालन किया है। परन्तु कार्य सिद्ध नहीं हुआ, इस के लिये तुम अपने मन में जरा भी खेद मत करो / पतित्रता स्त्री अपने पति की, सिपाही राजा की, शिष्य अपने गुरु की, पुत्र अपने पिता की आज्ञा का यदि उल्लंघन करे तो वह अपने व्रत को खंडित करता है / तुमने मेरी आज्ञा का पालन करके अच्छा ही किया है। इसलिये खेद मत करो।' इस तरह राजा ने भट्टमात्र को आश्वासन दिया तथा अपने चित्त में चोर के वृतान्त का स्मरण करता हुआ अपने निबास-स्थान पर आ गया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org