________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 213 पुरस्कार देता था। इस प्रकार पुरस्कार देने वाले उस सार्थवाह के सामने वेश्याओं अत्यन्त प्रसन्न हो कर उसके आगे फिर से सर्वोत्तम नृत्य करने लगी। फिर कुछ समय बाद सार्थवाह ने कहाः-" तुम लोगों को पुनः मद्यपान करने की इच्छा होती है ?". तब वेश्याओं ने कहाः-" हम लोगों को इस प्रकार की सर्वोत्तम मदिरा अत्यन्त प्रिय है।" / तब उस सार्थवाह ने निश्चेष्ट अवस्था करने वाला चूर्ण से मिश्रित मदिरा उन वेश्याओं को पीने के लिये दी। उन वेश्याओं ने पूर्ववत् यथेष्ट मदिरा पी और पुनः नृत्य करने लगी। वेश्याओं का अचेतन हो जाना इस प्रकार नृत्य करती हुई वे वेश्याओं कुछ ही समय के अनन्तर मूर्छित हो गई तथा निश्चेष्ट काष्ट समान चेतना रहित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ीं। जिस प्रकार स्त्री विधवा होने ष्ट होजाती है, उसी प्रकार अत्यन्त बुद्धिमान व्यक्ति भी मद्य पीकर नष्ट होजाता है। पापी व्यक्ति मदिरा पान कर के जब चेतना से रहित हो जाते , तब वे जननी के साथ ही प्रिया के समान व्यवहार करने लगते है और प्रिया के साथ माता के समान व्यवहार करते हैं। मदिरा पीने से जिस की चेतना लुप्त हो गई है, वह व्यक्ति अपना तथा पराया कुछ हीत भी नहीं समझता है / वह उन्मत्त होकर अपने को कभी स्वामी समझने लगता है, कभी अपने को सेवक समझता है। मदिरा पान कर के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org