________________ विक्रम चरित्र पेटी को नहीं देखा। तब रानी से पूछा कि 'आभूषणों से भरी अपनी पेटी कहाँ है ?' रानी बोली कि-'रात्रि में मैंने पेटी को शय्या के नीचे ही रखी थी।' राजा ने पुनः कहा कि 'कहीं अन्यत्र रखी होगी / शय्या के नीचे तो पेटी नहीं है।' रानी ने कहा कि 'रात्रि में शयन करने के समय पेटी यहीं रखी थी।' राजा ने रानी से कहा कि इस प्रकार के विषम स्थान में भी रात्रि में कोई चोर प्रवेश कर के ही पेटी को.ले गया है। जब इस प्रकार के विषम स्थान में भी चुपचाप कोई आसकता है, तब यदि वह मुझ को मार दे, तो क्या दशा हो ? क्षुद्र कीटसे लेकर इन्द्र तक सब को जीने की आकांक्षा एकसी ही होती है / मृत्यु का भय भी सबको समान ही रहता है। जब कोई निर्दय व्यक्ति किसी जीव को मारता है तब वह जीवन को छोड़कर अत्यन्त विशाल राज्य का सुख भी नहीं चाहता। इसलिये सावधानी से रहना चाहिये।' तत्पश्चात् राजा ने पदचिह्न पहचान ने वालों को बुलाया और पदचिह्न खोजने के लिये कहा गया। परन्तु वे लोग अच्छी तरह खोजने पर भी पदचिह्न को नहीं देख पाये। राजा ने कोतवाल को बुलवाया और उस से कहा कि तुम लोग रात में कहाँ चले गये थे। अथवा तुम लोग सावधानी से मेरे महल की रक्षा नहीं करते हो। तब कोतवाल ने कहा कि 'हे महाराज ! हम बराबर रात में जग कर तथा बहुत सावधानी से महल के चारों तरफ सदा घूम घूम कर महल की रक्षा करते हैं।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org