________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित इसलिये जो अपना हित चाहता है उस को इन सब दुष्कर्मों में कभी भी नहीं फँसना चाहिये। इन सब दुष्कर्मों के कारण ही विक्रमादित्य द्वारा खप्पर का विनाश हुआ / नगरजनों की वस्तुओं का उन्हें सौंपना जब वह चोर इस प्रकार से मारा गया, तब विक्रमादित्य ने प्रसन्न होकर जिन जिन शेठों का द्रव्य, कन्या आदि वह चोर चुरा कर ले आया था, उन सब को अपनी अपनी वस्तु लेनेके लिये नगर से बुलाया / वे श्रेष्ठी लोग आकर अपनी अपनी वस्तु लेकर सब मनोरथ के पूर्ण हो जाने के कारण अत्यन्त प्रसन्न होते हुए अपने अपने घर गये / श्रीदत्त आदि चारों शेठ अपनी अपनी कन्याओं को प्राप्त कर अत्यन्त प्रसन्न हुए तथा अपने अपने घर गये / कलावतीकी प्राप्ति / . राजा विक्रमादित्य ने भी उस कृष्ण नामक ब्राह्मण को सुवर्ण से सम्पुटित पत्र देकर अपनी स्त्री कलावती को ग्रहण किया। फिर वे मन्त्रीवरों द्वारा लाये हुए बड़े मदोन्मत्त हस्ती पर चढ़ कर भट्टमात्र आदि मन्त्रियों के साथ बड़े उत्सव के साथ अपने स्थान पर गये। __जहाँ स्तुति पाठ करने वाले चारणों को सदैव सुवर्ण दिया जाता है, जहाँ सतत मनोहर गीत ध्वनि होती है, जहाँ गाने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org