________________ विक्रम चरित्र वाले बराबर रुपये लूटते हैं, जहाँ नर्तक लोग सतत नृत्योत्सव करते रहते हैं तथा जहाँ सतत मंगलकारक भेरी, दुन्दुभि आदि वाद्य बजते हैं और जिसके उचे उचे शिखरों ने पूर्व राजाओं के महलों व शिखरों को जीत लिया है ऐसे महल में राजा विक्रमादित्य आनन्द से रहने लगे / तत्पश्चात् सब नगर निवासी लोग सुखपूर्वक रहने लगे। राजा विक्रमादित्य भी रामचन्द्र के समान न्याय मार्ग से अपनी प्रजा का पालन करने लगे। राजा यदि धर्म में तत्पर रहता हैं तो प्रजा भी धर्म कार्य करती है और राजा यदि पापी होता है तो प्रजा भी घोर पाप कर्म करने लगती है।x प्रजाजन राजा का ही अनुकरण करते हैं। राजा की जैसी प्रवृति है प्रजा भी वैसी ही हो जाती है। पाठक गण ! राजा विक्रमादित्य अपने चातुर्य से किस प्रकार सुकोमला के साथ सुख भोग कर तथा उसको गर्भवती जानकर ड़ कर अने नगर में आये, किस प्रकार खप्पर नामक चोर का विनाश किया सब बातें समयोपयोगी उपदेशों के साथ आप लग को इस तीसरे सर्ग में बताई गई हैं। अब आप लोगों के मनोरञ्जन के लिये आगे के प्रकरण में सुकोमला का तथा xराज्ञि धर्मिणि धमिष्ठाः पा पापा सो समाः। राजानमनुवर्तन्ते, यथा राजा तथा प्रजाः // 271 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org