________________ विक्रम चरित्र अर्थात् शान्ति को ही जो अपना आश्रय-स्थान मानता है, वही सुखी इसलिये तुम भी इसी प्रकार समझती हुई यहाँ पर सुख से रहो। गर्भ रूप एक सहायक देकर पति चला गया है मानों / इसलिये अब मन में कुछ भी खेद मत करो। यदि पुण्य के प्रभाव से पूर्ण मास होने पर बालक हुआ तो मैं आदर पूर्वक उस बालक को एक समृद्ध देश समर्पित कर दूंगा। यदि कन्या उत्पन्न हुई तो किसी अच्छे राजा के साथ उसका प्रेम पूर्वक पाणिग्रहण करा दूंगा। इस प्रकार अपने माता पिता की बात सुन कर सुकोमला का चित्त स्थिर हुआ धर्म-कार्य में तथा ध्यान में अपनों मन लगाती हुई विधि पूर्वक गर्भ का पालन करने लगी। क्योंकि____"वायु कारक वस्तु के सेवन करने से गर्भस्थ सन्तान कुब्ज, अन्ध, जड़ या वामन हो जाती है / पित्तकारक वस्तु के सेवन करने से गर्भस्थ सन्तान के सिर में केश नहीं होते तथा वह पीले वर्ण की हो जाती है। कफ कारक वस्तु के सेवन करने से गर्भस्थ सन्तान पाण्डु रोग वाली तथा श्वित्र-सफेद कोढ़ रोग वाली होती है। "2 पिता योगाभ्यासो विषयविरतिः सा च जननी / विवेकः सोदर्यः प्रतिदिनमनीहा च भगिनी // प्रिया शान्तिः पुत्रो विनय उपकारः प्रियसुहृत् / सहायो वैराग्यं गृहमुपशमो यस्य स सुखी // 7 // वातलैश्च भवेद् गर्भः, कुब्जान्धजडवामनः / पित्तलैः खलतिः पिङ्गः श्वित्री पाण्डुः कफादिभिः // 12 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org