________________ 162 विक्रम चरित्र उत्सव कर के देवकुमार को पण्डित के पास पढ़ने भेजा। सुकोमला का पुत्र देवकुमार निरंतर परिश्रम पूर्वक पण्डित के समीप रह कर अध्ययन करता हुआ शीघ्र ही सर्व शास्त्र, शस्त्रविद्या तथा कला में पारंगत होगया / क्यों कि:- "जैसे जल में तैल, दुर्जन मनुष्य के द्वारा गुप्त बात, और सत्पात्र में दीया अल्प दान बहुत विस्तार को पाता है, वैसे ही बुद्धिमान व्यक्ति में शास्त्र भी बुद्धि के प्रभाव से स्वयं विस्तृत हो जाता है / "+ ___ आहार, निद्रा, भय और मैथुन तो पशु और मनुष्य दोनों में समान ही हैं। केवल एक ज्ञान ही मनुष्य में विशेष होता है। जिस मनुष्य में ज्ञान नहीं है, वह पशु के समान ही गिनाजाता है। लडकों का ताना . एक दिन उस पाठशाला का कोई छात्र देवकुमार के साथ लड़ता हुआ अत्यन्त कठोर वचन से बोला:- " अरे अपितृक ! मैंने अभी तक तुझे बहुत क्षमा किया, क्योंकि तू राजा शालिवाहन की पुत्री का पुत्र है। परन्तु अब मैं तुम्हारे अपराध को जरा भी सहन नहीं करूँगा।" यह बात सुन कर देवकुमार ने अपने मन में सोचा कि—यह सत्य कह रहा है; क्योंकि जब मैं सभा में जाता हूँ, तो सभ्य लोग मुझको 'हे राजा के दौहित्र !' अथवा ' हे सुकोमला +जले तैलं खले गुह्यं पात्रे दानं मनागपि / प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तारं वस्तुशक्तितः // 21 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org