________________ 172 विक्रम चरित्र प्रयोग पंडितों से सीखना चाहिये। मिथ्या बोलना द्यूत-जूआ खेलने वालों से सीखना चाहिये, और कपट करना स्त्रियों से सीखना चाहिये / "+ वेश्या के यहाँ ठहरना . इस प्रकार-अपने मन में विचार कर देवकुमार नगरकी मुख्य वेश्या के घर में पहुँचा / उसको देखकर वेश्या ने पूछा कि 'तुम कौन हो ? कहा से आये हो ? एवं क्या काम है ? ' देवकुमार ने कहा कि-' मेरा नाम 'सर्वहर' है। मैं चौर हूँ। राजाओं तथा धनिकों के धन का अपहरण करता हूँ। मैं तुम्हारे यहा आश्रय चाहता हूँ।' वेश्या बोली कि ' मैं तुम को अपने घर में आश्रय नहीं दे सकती / क्योंकि यदि राजा को ज्ञात हो जाय तो वह मेरा सर्वस्व ले लेगा और मुझे बरबाद कर देगा। क्योंकि चोरी करने वाला, चोरी कराने वाला, चोरी करने का विचार देने वाला, भेद बताने वाला, चोरी के धन को खरीदने वाला तथा बेचने वाला, चोर को अन्न और आश्रय देने वाला ये सातों प्रकार के व्यक्ति चोर कहे जाते हैं। वणिक, वेश्या, चोर, मरे हुए व्यक्ति का धन लेना, पर स्त्री का सेवन करना, और जुगार खेलना ये सब दुष्कर्म के स्थान हैं / राजा लोग चोरी करने वाले को चाहे वह अपना सम्बन्धी ही क्यों न हो, अवश्य दण्ड देते +विनयं राजपुत्रेभ्यः पण्डितेभ्यः सुभाषितम् / अनृतं सूतकारेभ्यः स्त्रीभ्यः शिक्षेत कैतवम् // 70 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org