________________ विक्रम चरित्र मेरे सामने किया था / इस दुष्ट बुद्धि चोर को मारने का यही अवसर है यदि यह किसी प्रकार भी गुफा से निकल जायगा, तो देव-दानव सब के लिये अजेय बन जायेगा / इसलिये किसी भी तरह से चोरों के प्रमुख इस खप्पर को शीघ्र ही मार डालना चाहिये / इस तरह दोनों आपस में लड़ने को उद्यत हो गये। राजा विक्रमादित्य और खप्पर चोर दोनों परस्पर निर्दय होकर प्रहार करने लगे / लड़ते लड़ते राजा विक्रमादित्य ने अपनी तलवार से चोर की तलवार का बड़ी शीघ्रता से टुकडे कर डाला / फिर वह चोर युद्ध करने के लिये देवी की दी हुई अत्यन्त तीक्ष्ण तलवार गुफा के अन्य खंड में से लेकर आया / विक्रमादित्य ने यमराज के समान उस चोर को जाते हुए देख कर अग्निवैताल का स्मरण किया। स्मरण करते ही अग्निवैताल विक्रमादित्य के समीप उपस्थित हुआ / ठीक ही कहा है कि जो प्राणी पूर्व जन्म में बहुत अच्छे पुण्य कार्य कर चुके हैं, उन के स्मरण करते ही देवता लोग उसी क्षण उपस्थित हो जाते हैं / जब खप्पर वह तलवार उठा कर राजा विक्रमादित्य को मारने के लिये दौड़ा वैसे ही अग्निवैताल ने चोर के हाथ से तलवार छीन कर राजा को दे दी। तब क्रोध से लाल लाल आँखे वाला वह चोर भृकुटी टेढ़ी करके अपने चरण के आघात से पृथ्वी को भी कम्पित करने लगा / फिर विक्रमादित्य बोला: Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org