________________ विक्रम चरित्र ___अतः वह चोर बोला कि ' हे परदेशी ! तुम मेरे साथ चलो। जब में नगर के भीतर जाउँगा तब तुम को शीघ्र ही भोजन दूंगा। क्यों कि इसी नगर में मैंने भडभूजे की स्त्री को अपनी बहिन बना रखी है। वहाँ पर हम दोनों को सुख पूर्वक भोजन मिलजायगा।' तब वे दोनों साथ साथ भडभुंजे के घर पर गये और उस परदेशी को भोजन दिलाया। बादमें शहर में किसी सेठ के यहाँ चोरी कर के आये और कलाल के घर से शराब के भरे हुए दो घड़े लेकर कावड के दोनों तरफ बाँध कर उस परदेशी के कंधे पर रख कर वहां से चले गये। इस समय राजा विक्रमादित्य ने अपने साथ रहने के लिये अग्निवैताल का स्मरण किया जो वहाँ उपस्थित हुआ और गुप्त रीति से राजा के समीप में रहने लगा। एकान्त में अग्निवैताल ने राजा से कहा कि 'मद्य पीने की मेरी इच्छा है' तब विक्रमादित्य बोला कि 'कुछ समय ठहरो मैं तुम्हारी इच्छा को पूर्ण करूँगा' इस के बाद मार्ग में जाते हुए विक्रमादित्य ने चोर से कहा ' कि 'मद्य पान करने की मेरी इच्छा है।" ऐसा सुनकर वह चोर बोला कि-'अरे सर्व भक्षक ! बहुत सा भोजन खाने से भी तेरा पेट नहीं भरा ? / ' इस प्रकार चोर के बोलने पर जब विक्रमादित्यने मद्यका एक घडा हाथ में लिया, तो दूसरा घडा कावडमें से नीचे गिर पडा / चोरने जब एक घडे को फूटा हुआ और दूसरा घडा विक्रमादित्य को हाथ में लिये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org