________________ विक्रम चरित्र होता है, शनि हो तो उस वर्ष में अनेक प्रकारके उपद्रव होते है। रोहिणी के रथके मध्यसे पाटता हुआ चन्द्रमा चले तो अत्यन्त क्लेश समझना चाहिये / उस में भी चन्द्र यदि क्रूर ग्रह के साथ में हो तो और भी महा अनर्थ होता है।' + .. खप्पर की श्रेष्टि कन्याओं से बात दोनों की लड़ाई _ अतः ब्राह्मण ने स्वयं दीप जलाया और होमादि क्रिया को सम्पन्न किया। बादमें जब तक उस ब्राह्मणने गाय को बाँधा तब तक वह चोर कहीं भाग गया। ब्राह्मण ने भी अपने स्थान में जाकर शयन किया और सर्प भी वहाँ से चला गया। तब राजा भी वहाँ से निकल कर राजमार्ग पर चलने लगा। उसने अपने मनमें विचार किया कि-' जब तक चुप-चाप मैं इसका सब कुछ सहन नहीं करूँगा, तब तक इस बलवान् चोरका निग्रह नहीं कर सकूँगा। इसलिये अब से मुझ को चाहिये कि मैं बराबर उस चोर की विनय करता रहूँ। जिससे वह चोर हाथ में आ जाय / +पञ्चतारा ग्रहा यत्र सोमं कुर्वन्ति दक्षिणे / भौमे चराजमारी स्यात् जनमारी च भार्गवे // 199 // बुधे रसक्षयं कुर्यात् गुरौ कुर्यात् तिरोदकम् / शनौ वर्षक्षयं कुर्यात् मासे भासे निरीक्षयेत् // 20 // रोहिण्या यदि शकटेन चन्द्रो गच्छति पाटयन् / तदा दुःस्थं विजानीयात् क्रूरयुक्तो विशेषतः // 201 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org