________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित स्नान कर।"x ___" हे पाण्डुपुत्र! जल से अन्तरात्मा शुद्ध नहीं होता। अतः संयम रूप जल से पूर्ण सत्य रूप प्रवाह युक्त शील रूप तटवाली तथा दया रूप तरंग से युक्त आत्मा रूप स्वच्छ नदी में स्नान कर।"* __" मछली मारने वाले मछुएको एक वर्ष में जितना पाप होता है, उतना ही पाप एक दिन बिना छाने हुए पानी का उपयोग करने वाले व्यक्ति को होता है।"+ ____ कन्द मूलादि खाने व रात्रि भोजन के दोष पुराण आदि ग्रन्थो म भी इस प्रकार बताये हैं : " ये चार नरक के द्वार कहे गये हैं-पहला रात्रि भोजन, दूसरा पर स्त्री गमन, तीसरा शराब आदिका व्यसन तथा चौथा अभक्ष्य व अनंतकाय (बोल विगैरे आचार-अथाना ) और आलू , xकूपेषु अधमं स्नानं, वापीस्नानं च मध्यमम् / तटाके वर्जयेत्स्नानं, नद्यां स्नानं न शोभनम् // 195 // गृहे चैवोत्तमं स्नानं, जलं चैव च शोधितम् / तथा त्वं पाण्डवश्रेष्ठ ! गृहे स्नानं समाचर // 196 // *आत्मा नदी संयमतोयपूर्णा, सत्याऽऽवहा शीलतटा दयोर्मिः / तत्राभिषेकं कुरु पाण्डुपुत्र! न वारिणा शुद्धयति चान्तरात्मा॥ +संवत्सरेण यत्पापं, कैवर्तस्य च जायते / एकाऽहेन तदाप्नोति, अपूतजलसंग्रही // 199 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org