________________ 106 विक्रम चरित्र ____जैसे विश्वरूप मणि मनुष्यों को मनोवांछित फल देती है, उसी तरह यंत्र वाहक जैसी जैसी भावना रखता है वैसी ही वस्तु हो जाती है।"* विद्याधरका नारीद्वेष विद्याधर की यह बात सुनकर शालिवाहन राजा ने कहा कि मनुष्यों के आगे नृत्य करने से तुम्हें कोई दोष न लगेगा / यदि देव बुद्धि से हमारे आगे नृत्य करो तो तुम्हें दोष लगना संभव है वरना दोष न लगेगा। उसका ऐसा युक्तियुक्त वचन सुनकर विद्याधर (विक्रमादित्य ) ने कहा कि राजसभा में स्त्री को देखने से ही मेरा प्राण चला जायगा। अतः आप ऐसा आग्रह न करें। आप को नृत्य देखने की इच्छा हो तो कल प्रातः काल यहाँ मंदिर में ही नृत्य करेंगे उसे देख लें / शालिवाहन राजा ने उसका समाधान करते हुए कहा कि राजसभा में एक भी स्त्री आप को दृष्टिगोचर न हो, ऐसा प्रबन्ध करवा दूंगा। अतः आप प्रसन्नता पूर्वक राजसभा में नृत्य करना स्वीकार करें, इसमें कोई बाधा न होगी। राजसभामें नृत्य तथा नारीद्वेष के कारणका कथन राजा शालिवाहन ने नगर में ढिंढोरा पिटवाया कि “आज राजसभा में नृत्य होने वाला है पर कोई भी स्त्री वहाँ उपस्थित नहीं हो सकेगी। स्त्रियाँ अपने अपने घरों में ही रहें।" इस ढिंढोरे की खबर * येन येन हि भावेन, युज्यते यन्त्रवाहकः। तेन तन्मयतां याति, विश्वरूपो मणिर्यथा // 261 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org