________________ -124 विक्रम चरित्र बहुत बड़ा सर्प है। उस सर्प के मुख में एक अतीव सुन्दर कन्या है। हम सब भ्रमण करते हुए वहाँ गये तब वह सर्प बोला कि-'तुम मेरे मुख से यह कन्या लेलो। यदि तुम कायर हो, तो यहाँ से शीघ्र दूर चले जाओ।' यह सुनकर जब मैं उस दिव्य रूपवाली कन्या कों ग्रहण करने के रिये उद्यत हुआ, उसी समय इन दुष्टों ने आकर मुझे जगादिया / " यह सुनकर मंत्रीश्वर बोले:-" हे महाराज ! यह स्वप्न अवश्य सत्य हो सकता है / स्वप्न शास्त्र में कहा है कि 'संपूर्ण शरीर में श्वेत चन्दन लगायी हुई तथा श्वेत वस्त्र धारण की हुई स्त्री स्वप्न में जिसका आलिङ्गन करे उसकी सब प्रकार से संपत्ति बढती है तथा देवता, गुरु, गाय, बैल, वडील वर्ग, साधुजन, यह सब स्वप्न में मनुष्य को जो कुछ कहते हैं, वह सब वैसे होता है।' इस लिये कोई विद्याधर, देव, किन्नर, अथवा पिशाच प्रसन्न होकर आपको अवश्य ही कन्या देगा। अतः हे राजन् ! वहाँ शीघ्रता से जाकर उस कन्या को अङ्गीकार करो। क्यों कि मनुष्य का ऐसा स्वप्न देखना दुर्लभ है।" ___राजा विक्रमादित्य मंत्रीयों को साथ लेकर शीघ्र ही निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचे और स्वप्ने के अनुसार ही सब कुछ देखा / इन लोगों को देखकर बहाँ कुएं में रहा हुआ सर्प बोला:-" इस में जिसको सबसे अधिक साहस हो, वह मेरे मुख से इस कन्या को शीघ्र ग्रहण करे। यदि भय मालूम हो तो इस कूप से दूर चलाजाय / " Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org