________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित भी ऐसी उत्तम जोडी देखकर खूब आनन्दित हुए। राजाने अनेक प्रकार के दास दासी एवं प्रभूत धन संपत्ति देकर अपनी पुत्री के विवाह की चिरकालीन मनोवांछा पूरी की। इस प्रकार राजा शश्विाहन ने विद्याधर का खूब मान सन्मान कर के उसे वहाँ रहने का आग्रह किया और उसे वहाँ रहने के लिए एक सात मंजिला महल दिया। वह विद्याधर विक्रमादित्य अपनी नव परिणीता पत्नी सुकोमला के साथ आनन्द विलास करते हुए कुछ समय वहीं रहा। हे सुज्ञ पाठको! विक्रम के लग्न का यह अद्भुत प्रसंग पूर्ण हुआ अब आगे विक्रमादित्य अपनी पत्नी के साथ किस तरह रहता हैं तथा और क्या क्या होता है वह आपको आगे के सर्ग में बताया जायगा। तपागच्छीय-नानाग्रन्थरचयिता-ष्णसरस्वतीविरुदधारक-परमपूज्य-आचार्यश्री-मुनिसुंदरसूरीश्वरशिष्य-गणिवर्थ-श्रीशुभशीलगणि विरचिते श्रीविक्रमचरिते द्वितीयः सर्गः समाप्तः ह सुज्ञ नानातीर्थोद्धारक-आबालब्रह्मचारि-शासनसम्राटूश्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरशिष्य-कविरत्न-शास्त्रविशारद-पीयूषपाणि-जैनाचार्य-श्रीमद्विजयामृतसू. रीश्वरस्य तृतीयशिष्यः वैयावच्चकरणदक्षमुनिखान्तिविजयस्तस्य शिष्यमुनिनिरंजनविजयेन कृतो विक्रमचरितस्य हीन्दीभाषायां भावानु- ... वादः, तस्य च द्वितीयः सर्गः समाप्तः Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org