________________ THSYMADI DAUNALOiimmDALVE ब तृतीय सर्ग तेरहवाँ प्रकरण विक्रमका अवन्ती आना तथा कलावतीसे लग्न इसके बाद कार्य सिद्धि होने पर प्रसन्न विक्रमादित्य भट्टमात्र और अग्निवैताल दोनों को बुलाकर एकान्त में बोलाः- जो कार्य देवताओं से भी नहीं होसकता था, ऐसा मेरे मनसे चिन्तित कार्य तुम दोनों की सहायता से सिद्ध होगया, क्यों कि "जैसा होनेवाला होता है, वैसी ही बुद्धि होती है और वैसी ही मन में भावना होती है तथा सहायक भी वैसे ही मिलते हैं। "1 ___ तुम्हारे जैसे श्रेष्ठ बुद्धि वालों से मन्त्र, बुद्धि तथा भुजाओं का पराक्रम सा कुछ साध्य है। जो धीर है, वही लक्ष्मी तथा शोभा 'सासा सम्पद्यते बुद्धिः सा मतिः सा च भावना। सहायास्तादृशा ज्ञेया यादृशी भवितव्यता // 3 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org