________________ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm मुनि निरंजनविजयसंयोजित 103 चैत्यमें नृत्य - तब वे तीनो संध्या समय मंदिर में गये और रात्रि में प्रभु के सन्मुख महाराजा विक्रमादित्य ने कई भवों के पापों का नाश करने वाली स्तुति गान करके भक्ति प्रकट की। कहा है कि ' भावना भवनाशिनी' दान से दारिद्य नाश होता है, शील से दुगति का नाश होता है, बुद्धि से अज्ञान का नाश होता है तथा शुभ भावना से भव याने जन्म-मरण रूप संसार का नाश होता है। रात्रि में नृत्य करके विक्रमादित्य और उसके दोनों साथी नगर बाहर उद्यान में जाकर सो गये / सबेरे सूर्योदय के बाद पुनः विक्रमादित्य ने दोनों साथियों से कहा-'चलो हम लोग मंदिर में जाकर भगवान के समक्ष नृत्य के / ' साथ ही वैताल को इशारे से समझाया कि 'जब में ऐसी खास संज्ञा करूं जैसे हाथ का अंगूठा हिलाऊँ तब तुम हम दोनो को स्कंध पर लेकर उड जाना और वैसे ही दूसरी संज्ञा के करने पर हमें नीचे ले आना तब हम पुनः नृत्य करेंगे।' __महाराजा विक्रमादित्य अग्निवैताल को गुप्त संकेत समझा कर दोनो के साथ प्रभु के मंदिर में आये तथा नृत्य गान करने लगे। कुछ समय बाद जब मंदिर का पुजारी पूजा करने आया तो वह ऐसा अद्भुत नृत्य गान होते देखकर चमत्कृत हुआ तथा सोचने लगा कि ये कौन हैं ? क्या ये देव या दानव हैं या कोई विद्याधर या पाताल कुमार हैं जो जिनेश्वर भगवान की स्तुति करने आये हैं / अल्प समय में ही महाराजा शालिवाहन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org