________________ 102 विक्रम चरित्र तथा पट्टरनी कमलावती से तीन दिव्य शृंगार लेते.आना / इनसे अपनी कार्य सिद्धि होगी क्योंकि आडम्बर से ही कई कार्य सिद्ध होते हैं। विक्रमादित्य का आदेश पाकर अग्निवैताल अवन्ती नगरी की तरफ चल पड़ा। कहा है कि- " सती स्त्री पति की, नौकर मालिक की, शिष्य गुरु की, और पुत्र पिता की आज्ञा में संशय करें तो अपना व्रत खंडन किया ऐसा समझना चाहिये / "x __राजा के बिना सेवक का और सेवक के बिना राजा का व्यवहार नहीं चलता। इन दोनों का अन्योन्य गाढ सम्बन्ध होता है। जो सेवक युद्ध में आगे, नगर में मालिक के पीछे तथा महल में होने पर द्वार पर रहता है व ही सेवक मालिक का प्रीतिपात्र होता है / यथा समय वैताल पांचों घोडों व वेश्याओं को अवन्ती पहुंचा कर पट्टरानी से दिव्य श्रृंगार लेकर आया तथा महाराजा विक्रमादित्य को वे तीनों शृंगार दिये। विक्रमादित्य कहने लगा की चालाकी या माया बिना कोई कार्य सिद्ध नहीं हो सकता। इस नगर का राजा शालिवाहन जिनेश्वर का भक्त है। उसने जिनेश्वर का मंदिर भी बनवाया है / अतः हम भी वहाँ जाकर नृत्य करें। xसती पत्युः प्रभोः पत्तिः गुरोः शिष्यः पितुः सुतः। आदेशे संशयं कुर्वन् खण्डयत्यात्मनो व्रतम् // 232 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org