________________ 22 मुनि निरंजनविजयसंयोजित प्रसव कालं समीप आने पर मैंने शुक से कहा कि 'किसी वृक्ष पर मेरे लिए घोंसला (माळा) बनाओ जिससे बच्चों का रक्षण हो सके।' किन्तु कई बार प्रार्थना करने पर भी उसने कोई घोंसला नहीं बनाया। फिर बड़े कष्ट से शमी वृक्ष पर अपना घोंसला बनाया और मैंने दो बच्चे को जन्म दिया। उन दोनों पुत्रों के लिए चारा दाना भी मुझे अकेली को ही जुटाना पड़ता था और वह शुक उसमें कुछ भी मदद नहीं देता था। एक दफा उस जंगल में परस्पर वृक्षों के संघर्ष से आग लग गई। वह आग बड़े जोरों से मेरे घोंसले नजदीक आ रही थी। मैंने शुक से प्रार्थना की ‘कि दोनों एक एक बच्चे को लेकर भाग जायँ ' पर उस दुष्ट आलसीने मेरी बात न सुनी। आग लग जाने पर भी उसने कोई सहायता न की और दूर खड़ा खड़ा देखता रहा। इतने में मेरे दोनों बच्चे जल मरे / ___" अपने कर्म से प्रेरित बुद्धिमान मनुष्य भी क्या कर सकता है क्योंकि बुद्धि भी प्रायः कर्म के अनुसार ही प्राप्त होती है / "x शुकी तथा शालिवाहन की पुत्री विक्रमाकी विदा ... फिर अंत में शुभ ध्यान से मृत्यु पाकर तथा पूर्व भव के पुण्य प्रभाव से ही यहाँ शालिवाहन राजा की कन्या सुकोमला xकिं करोति नरः प्राशः, प्रेर्यमाणः स्वकर्मभिः / प्रायेण हि मनुष्याणां, बुद्धिः कर्मानुसारिणी // 218 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org