________________ 70 विक्रम चरित्र उसको काम के सिवाय रात्रि या दिन में दूसरा कुछ भी नहीं . दिखाई देता।"x मंत्रीश्वर ने सोच कर कहा कि :-'हे राजन् ! उस पुरुषद्वेषिणी राजकन्या के साथ पाणिग्रहण करना मानो सोये हुए सर्प को जगाना है। अर्थात् यह एक अनर्थ का मूल होगा / क्यों कि इस प्रकार की स्त्री मनुष्यों की मृत्यु के लिये ही होती है। इस लिये आपका उसके साथ पाणिग्रहण करना मेरी राय से अनुचित है।' महाराज ने कहा कि-'यदि मेरे जीवन से प्रयोजन हो, तो तुम उस राजकन्या की प्राप्ति के लिये शीघ्र उद्यम करो।' __मंत्रीश्वर ने कहा-'हे राजन् ! इस अवन्ती नगरी में रहने वाली जो ‘मदना' और 'कामकेली' नाम की दो वेश्याओं हैं, वे बड़ी चतुर एवं कार्य-दक्ष हैं। वे पहले प्रतिष्ठानपुर में रहती थीं। उनकी बहिन अभी भी उस नगर की वेश्याओं में सबसे अधिक प्रसिद्ध है। अपनी इन दोनों वेश्याओं के द्वारा वहाँ रहने वाली वेश्या से संकेत पूर्वक जाकर कुछ काम करें तो अपना काम सिद्ध होने की सम्भावना है। अन्यथा मेरी समझ में इसका दूसरा कोई उपाय नहीं है।' इस के बाद महाराज ने 'मदना' और 'कामकेली' वेश्याओं को बुलवाकर पूछा कि-'प्रतिष्ठानपुर में तुम्हारी सम्बन्धिनी कौन है?' xदिवा पश्यन्ति नो घूकाः, काको नक्तं न पश्यति / अपूर्वः कोऽपि कामान्धो, दिवा नक्तं न पश्यति // 36 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org