________________ विक्रम चरित्र . अनेक प्रकार के दृश्यों को देखते हुए, और मुसाफरी का अनुभव करते हुए, प्रतिष्टानपुर के बाहर उद्यान में जा पहुँचे, इन सब को आया हुआ देखकर उद्यान रक्षिका मार्जारी देवी बड़े जोर से तीन बार चिल्लाई। तब महाराज ने इसका कारण पूछा, भट्टमात्र ने उस मार्जारी के उच्च स्वर का हाल कहा कि-' यह कहती है कि राजपुत्री नरद्वेषिणी आयेगी और पुरुषों को जान से मार डालेगी।' यह सुनकर महाराजा ने वेश्याओं से कहा:-“ अपनी रक्षा का कौन सा उपाय है !" स्त्री रूप धारण तब वेश्याओं ने सोच कर कहा:-" यदि स्त्रीरूप धारण करके हमारी बहिन के घर पर सब शीघ्र जावें तो प्राण बच सकते हैं।" तब महाराज आदि पाँचों व्यक्ति स्त्री-रूप धारण कर के नगर-वेश्या 'रूपश्री' के घर गये। वहाँ उस ने बहुत दिनो पर आई हुई बहनों को देख अत्यन्त प्रसन्नता से कुशलादि समाचार पूछा, और गद में बड़े आदर से उन लोगों का मिष्टान्नादि उत्तम भोजन से स्वागत किया / पाठक गण ! महाराज विक्रमादित्य बड़े. साहसी और पराक्रमी थे। किन्तु मार्जारी के वचन से अपनी प्राण रक्षा या। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org