________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित का फल एकाग्रचित्त से सुना / जैसे तीर्थयात्रा के ये सब फल हैं-" सांसारिक पाप कार्यों से निवृत्ति, द्रव्य (धन) का सद्उपयोग, श्री संघ और साधर्मिक बन्धुओं की भक्ति, सम्यग्दर्शन की शुद्धि, स्नेही जनों का हित, जीर्णमन्दिर आदि का उद्धार और तीर्थ की उन्नति फिर इन सब से प्रभाव बढ़ता है / जिनेश्वर भगवान् के वचनों का पालन और तीर्थकर नाम कर्म बँधता है। मोक्ष के सामीप्य भाव और क्रम से देवत्व (देवजन्म) मनुष्यत्व ( मनुष्य जन्म) प्राप्त होता है / "* .. इस के अलावा और भी कहा है "शुभ भाव से तीर्थाधिराज शत्रुजय का स्पर्श, गिरनार का नमस्कार और गजपद कुण्ड में स्नान करने से फिर से इस संसार में जन्म नहीं लेना पड़ता है / "+ ___ तीर्थ के ध्यान करने से सहस्र पल्योपम प्रमाण पाप नष्ट होता है, तीर्थ का नाम लेने अथवा तीर्थयात्रा का विचार *आरम्भाणां निवृतिर्द्रविणसफलता संघवात्सल्यमुच्चनैर्मल्यं दर्शनस्य प्रणयिजनहितं जीर्णचैत्यादिकृत्यम् / तीर्थोन्नत्यं प्रभा(व)वः जिनवचनकृतिस्तीर्थकृत्कर्मकत्यंसिद्धरासन्नभावः सुरनरपदवी तीर्थयात्राफलानि // 140 // +स्पृश्वा शत्रुजयं तीर्थं, नत्वा रैवतकाचलम् / स्नात्वा गजपदे कुण्डे, पुनर्जन्म न विद्यते // 14 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org