________________ मुनि निरजमविजयसंयोजित उसके पिता के घर गये और बड़े मान-सन्मान के साथ मना कर उसे घरमें ले गये। एकदा श्रीमती अपनी सखियों के साथ जिनेश्वर भगवान् के मन्दिर में दर्शन करने गई / वहाँ एक दमडी के फूल लेकर जिनेश्वर भगवान् को चढ़ाये / यह वृत्तान्त किसी के मुंह से धनश्रेष्ठी ने सुना त्योंही वे मूर्छित हो धरतीपर गिर पड़े। तब शीतोपचारादि से उन्हें स्वस्थ किया गया / दात पीसते हुए अति कठोर वचन बोले 'अरे पापिनि ! तू मेरे धन को इस प्रकार व्यय करके थोडे ही दिनों में मेरे घर को धन रहित कर देगी। अरे पापिनि ! आज तो मैं तुझे दया के कारण छोड़ देता हूँ। परन्तु ख्याल रखना कि अब आगे थोडा भी धन का दुरुपयोग किया तो जान गई समझना / दूसरी बार फिर ऐसा ही हुआ। एक दिन पुत्र कर्मण ने जिनेश्वर भगवान् के मन्दिर में जाकर एक पैसा पूजा कार्य में खर्च कर दिया। यह बात सुनते ही धनश्रेष्टी मूर्च्छित हो गये जब शीतोपचारादि से स्वस्थ हुए तो बड़े क्रोध में आकर बोले :- " अरे कुपुत्र! तूम इसी तरह रोज मेरे धनका दुर्व्यय करके थोड़े ही दिनों में सब सम्पत्ति का नाश कर देगा।" पिता की कृपणता को देखकर वह मौन रहा। परन्तु चुपके से वह धर्मादि कार्य में खूब सम्पत्ति खर्च करता था। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org