________________ 88 विक्रम चरित्र . जैसा कहा भी है : “कोई सुपुत्र ही अपने चरित्र से पिता से विलक्षण हो जाता है। जैसे घड़े में थोड़ा ही जल रहता है, परन्तु घड़े से उत्पन्न अगस्त्यमुनि समुद्र को भी पी गये।"x . एक समय एक संघ तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय की यात्रा करने को जा रहा था। तब इतने बड़े संघ को यात्रा पर जाते देखकर श्रीमती की भी अभिलाषा यात्रा करने जाने की हुई। श्रीमती ने अपने स्वामी से प्रार्थना की कि-" हे स्वामिन् ! बहुत से लोग संघ (समूह) बनाकर तीर्थयात्रा करने के लिये श्री शत्रुजय महातीर्थ जा रहै है, यदि आप की आज्ञा हो, तो मैं भ जाने की तैयारी करूं।" ___यह कथन सुन कर धनश्रेष्ठी बोले कि-" तू मुझको भूली हुई बात फिर से याद कराकर काटे से बांध रही है।" फिर श्रीमती रात को बिना पूछे ही घर से निकल गई और उसने श्री संघ के साथ तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय एवं गिरनारजी आदि महा तीथा की यात्रा अच्छी प्रकार पूर्ण की। श्री शत्रुजय गिरिराज पर श्री गुरु महाराज के मुख से तीर्थ यात्रादि xकुम्भः परिमितमम्भः पिबति पयःकुम्भसम्भवोऽम्भोधिम् / अतिरिच्येत सुजन्मा, कश्चिद् जनकाद् निजेन चरितेन // 134 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org