________________ विक्रम चरित्र अन्य नगरों पर वह मानो हँस रही हो, इस तरह वह सारे संसार को अपनी ओर अपूर्व शोभासे आकर्षित कर रही थी। इस नगरी में गगनचुम्बी शिखरवाले अनेक जिनमन्दिर शोभा देते थे / नगरी के समीप क्षिप्रा नदी के तट पर 'श्रीअवन्तीपार्श्वनाथ' भगवान् का मनोहर भव्य मन्दिर था / वहाँ यात्रा तथा दर्शन करने को जैन धर्म पालन करनेवाले बड़े बड़े अनेक श्रेष्ठी दूर दूर से आया करते थे। श्रीजैन धर्म की आबादी और नगरी की अपूर्व समृद्धि देखकर यात्रीगण चकित हो जाते थे / वे अपने 2 स्थान पर जाकर अलकापुरी के समान अवन्ती की शोभा का अपूर्व वर्णन लोगों के समक्ष किया करते थे / प्राचीन कवियों और अनेक ग्रन्थकारोंने अपने काव्यों तथा ग्रंथों में अवन्ति नगरी का सौन्दर्य पूर्ण वर्णन कर अपनी शक्तियों को सार्थक कीया, वह अभी भी विद्वत्समाज के आगे साक्षीभूत है। जैसे जगत में दूध से दही और घी की प्राप्ति सुलभ है, उसी तरह प्राणियों को धर्म के प्रभावसे अर्थ और काम की प्राप्ति अल्प प्रयत्न से ही शीघ्र हो जाती है। इसका ज्वलन्त दृष्टान्त राजा विक्रमादित्य का यह चरित्र है। __इस अवन्ती नगरी में भगवान् ‘महावीर' के समय 'चन्द्रप्रद्योत, राजा का शासन चल रहा था / इस के बाद क्रमसे 'नवनन्द,' 'चन्द्रगुप्त' 'अशोक' और जैन धर्मका परम आराधक ' महाराजा संप्रति' आदि बड़े 2 प्रभावशाली राजाओने अवन्ती का राज्य न्याय और नीति से चलाया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org