________________ विक्रम चरित्र ऐसे भी हैं जो लाखों मनुष्योंका भरणपोषण करते हैं और कितने ऐसे भी हैं जोकि अपना एक का भी भरण-पोषण नहीं कर सकते हैं। इसका कारण अपने अपने किये हुए. सुकृत और दुष्कृत कर्म ही हैं। मातृभक्त महाराज विक्रमादित्य प्रतिदिन प्रातःकाल में पुष्पाञ्जलि से मातृ-चरण कमलकी पूजा करके ही राज्य-सम्बन्धी अन्य कार्य करते थे। जैसा कहा है: " उपाध्याय से दस गुना अधिक आचार्य है, आचार्य से सौ गुना अधिक पिता है तथा पिता से भी हजार गुनी अधिक माता है। "* और भी कहा है:--- " वे ही सच्चे पुत्र हैं जो मातापिता के भक्त हैं। यथार्थ में माता पिता भी वे ही हैं जो पुत्रोंका पालन पोषण करें, मित्र वे ही हैं जिन पर पूरा विश्वास किया जा सके, स्त्री वही है जिस स्त्री से चित्त को पूर्ण शान्ति मिले" + दूसरे राज्यों का जीतना - इस प्रकार राज्य करते हुए महाराज विक्रमादित्यने अङ्ग, बङ्ग, तिलङ्ग आदि देशों के राजाओं को अपने पराक्रम से पराजित कर - * उपाध्यायाद् दशाचार्यः आचार्याणां शतं पिता / सहस्रं तु पितुर्माता गौरवेणातिरिच्यते // 182 // + ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः स पिता यस्तु पोषकः / तन्मित्रं यत्र विश्वासः स भार्या यत्र निर्वतिः॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org