________________ विक्रम चरित्र एक लोकोक्ति योगी भर्तृहरि के विषय में अनेक लोकोक्तियाँ जगत् में प्रसिद्ध हैं / जो कर्ण परंपरया सुनी जाती हैं कि किसी दिन ऋषिजी किसी गाँव के निकटवर्ती जलाशय के तट पर वृक्ष के नीचे एक पत्थर को सिरहाना (तकिया) बनाकर भूमि-शय्या पर शरीर की थकावट दूर . करने के लिये लेटे थे / वहाँ पानी भरने जानेवाली दो चार स्त्रियाँ आपस में बातचीत करती हुई योगी को देखकर बोली कि- देखो, इस योगी ने अवन्ती के सारे राज्य को तृण समान समझ कर छोड दिया, किन्तु अभी तक एक तकिये का मोह नहीं छूटा / ' इस कटाक्षपूर्ण वचन को भी अपना हितकारी समझ कर उस तकिये के स्थान में रखे हुए पत्थर के टुकडे को दूर हटा दिया / थोडी देर में फिर पानीभर के वे ही स्त्रियाँ घर जाती हुई योगी को देख कर आपसमें बोलने लगी कि- देखो अपनी बात योगी को बुरी लगी, जिससे पत्थर का वह तकिया हटादिया, साधु होने पर भी राग-द्वेष नहीं छूटे,' इस प्रकार उन सब स्त्रीयों के वचन सुनकर राजयोगी विचार करने लगे कि किसीने सच ही कहा है कि- दुरंगी दुनियाँ को जीत लेना दुष्कर है।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org