________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित - इसके बाद अवन्ती की सारी प्रजा तथा मंत्रीमंडल ने बड़े उत्सव के साथ धूम-धाम से महाराजा विक्रमादित्य का पदाभिषेक किया / एवं सेठ साहुकार, सरदार, राजकर्मचारी आदि ने अवन्तीपति के चरणों में अमूल्य वन्तु में भेंट की। बाद में महाराज ने भी प्रधान, सरदार आदि राजकर्मचारियों को उदार दिलसे यथायोग्य पारितोषिक देकर अपनी उदारता का परिचय दिया और भट्टमात्रको अपना महामात्य बनाया। जैसा कहा है: " इस असार संसार में एक धर्म ही ऐसा पदार्थ है जो धन-इच्छुक को धन देता है, कामार्थि को मनोवाञ्छित फलं देता है, सौभाग्य-इच्छुक को सौभाग्य देता है, पुत्रार्थियों को पुत्र देता है, राज्याभिलाषी को राज्य देता है तथा स्वर्ग एवं मोक्ष चाहनेवालों को स्वर्ग और मोक्ष भी देता है / अथवा अनेक विकल्प से क्या ? संसार में ऐसा कौन सा पदार्थ है जोकि धर्म से अप्राप्य है ? "x इस प्रकार अपने भाग्य से ही अवन्ती का सारा राज्य पाकर महाराज विक्रमादित्य सर्वदा अर्थियों को इच्छानुसार दान देते हुए न्याय मार्ग से राज्य-पालन करने लगे। क्योंकि इस संसार में कितने ऐसे मनुष्य है, जो हजारों मनुष्यों का पालन करते हैं। कोई 4. धर्मोऽयं धनवल्लभेषु धनदः कामार्थिनां कामदः / सौभाग्यार्थिषु तत्प्रदः किमपरं पुत्रार्थिनां पुत्रदः // राज्यार्थिष्वपि राज्यदः किमथवा नानाविकल्पैर्नृणां / तत् किं यन्न ददाति किञ्च तनुते स्वर्गापवर्गावपि // 178 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org