________________ आठवा प्रकरण अवधूत कौन ? जो पुरुष वीर और पराक्रमी होते हैं वे उतने ही दयालु और उदार भी होते हैं / अवधूत राजा का पराक्रम देख कर वीर अग्निवेताल राक्षस भी उसके वशमें हो गया / यह सब वृत्तान्त पूर्व प्रकरण में आगया है उससे पाठकगण पूरे. परिचित होंगे / अब अमात्य कर्मचारी तथा प्रजाजनोंने मिलकर अवधूत राजा से प्रार्थना की कि " हे पराक्रम शिरोमणि ! इस प्रजापर अनुग्रह कर अपने अवधूत वेश को त्यागकर उज्जयिनीपति महाराजा के योग्य मुकुट कुंडल आदि से युक्त होकर इस राज्यसिंहासन पर आरूढ हो कर इसे सुशोभित करने की कृपा करें।" प्रजाकी इस प्रकार युक्ति-युक्त प्रार्थना सुनकर राजा ने अवधूत वेश छोड़कर अपना राजचिन्ह आदि से अङ्कित सुशोभित वेश महोत्सव के साथ धारण किया। भट्टमात्र का आगमन उतने ही में पूर्व परिचित 'भट्टमात्र' राजा सभा में आकर हर्ष पूर्वक नमस्कार कर उपस्थित हुआ। महारांज अवन्तीपतिने भट्टमात्र से उसके कुशल समाचार पूछे / / Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org