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ज्ञानावरण :- अनंत ज्ञान है लेकिन आवरण की वजह से ज्ञान आवृत्त हो गया। जानने में फर्क आ गया।
दर्शनावरणः- अनंत दर्शन है लेकिन आवरण की वजह से दर्शन आवृत्त हो गया, सूझ नहीं पड़ती।
मोहनीयः- दर्शनावरण और ज्ञानावरण की वजह से मोहनीय उत्पन्न हो गया।
अंतराय:- मोहनीय की वजह से अंतराय आ गए। ब्रह्मांड का स्वामी होने के बावजूद भी देखो कैसी भिखारी जैसी दशा हो गई है? अंतराय कर्मों की वजह से!
वेदनीय :- सर्दी, गर्मी और भूख लगती है तो वह सब वेदनीय कर्म की वजह से।
नामरूप :- नाम रखा चंदू, फिर यह कि मैं गोरा हूँ, लंबा हूँ। गोत्र:- अच्छा पूज्य व्यक्ति, खराब निंद्य व्यक्ति। वह गोत्र। आयुष्य :- जिसका जन्म हुआ है वह फिर मरेगा ही।
द्रव्यकर्म, वह संचितकर्म कहलाता है और जब फल देने के लिए सम्मुख हो जाए तब वह प्रारब्धकर्म बनता है।
जो कुछ आए उसका समता भाव से निकाल कर दिया जाए तो द्रव्यकर्म से छूटा जा सकता है। ज्ञान-दर्शन के पट्टे साफ हो जाएँ तो सबकुछ सीधा हो जाएगा। अक्रम ज्ञान से पट्टे साफ हो जाते हैं। दर्शनावरण और मोहनीय संपूर्ण रूप से खत्म हो जाते हैं।
[२.२] ज्ञानावरण कर्म द्रव्यकर्मों को दादाश्री ने मोमबत्ती का उदाहरण देकर सुंदर तरीके से समझाया है। मोमबत्ती में क्या-क्या होता है? मोम होता है, बत्ती होती है और दियासलाई से जलाने पर जब वह प्रकाश देती है, तब वह पूरी मोमबत्ती कहलाती है। जो मोमबत्ती है, वह द्रव्यकर्म है। वह निरंतर पिघलती ही रहती
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