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प्रस्तावना
त्रैरूप्यका निराकरण करके अन्यथानुपपन्नत्वका ही समर्थन किया है । बौद्ध दार्शनिक हेतुके तीन भेद मानते हैं-स्वभाव, कार्य और अनुपलब्धि । अकलङ्क देवने कारण, पूर्वचर, उत्तरचर और सहचरको भी हेतु माना है । बौद्ध अनुपलब्धिको केवल प्रतिषेधसाधक मानते हैं। किंतु अकलङ्क देवने उपलब्धि और अनुपलब्धि दोनोंको ही विधिसाधक और दोनोंको ही प्रतिषेधसाधक माना है। इसीलिए प्रमाणसंग्रहमें सद्भावसाधक ९ उपलब्धियों और अभावसाधक ६ अनुपलब्धियोंको लिखकर प्रतिषेधसाधक ३ उपलब्धिोके भी उदाहरण दिये हैं। ___बौद्ध दृश्यानुपलब्धिसे ही अभावकी सिद्धि मानते हैं । अदृश्यानुपलब्धिसे नहीं। किसी स्थान विशेषमें घटकी अनुपलब्धि दृश्यानुपलब्धि है और पिशाचकी अनुपलब्धि अदृश्यानुपलब्धि है। बौद्धोंके अनुसार सूक्ष्म आदि विप्रकृष्ट विषयोंकी अनुपलब्धि संशयहेतु होनेसे अभावसाधक नहीं हो सकती है। बौद्धोंने दृश्यत्वका अर्थ केवल प्रत्यक्षविषयत्व किया है। इस विषयमें अकलङ्क देवका कहना है कि दृश्यत्वका अर्थ केवल प्रत्यक्षविषयत्व नहीं है, किंतु उसका अर्थ प्रमाणविषयत्व है। यही कारण है कि मृत शरीर में स्वभावसे अतीन्द्रिय चैतन्यका अभाव भी हमलोग सिद्ध करते हैं । यदि अदृश्यानुपलब्धि एकान्ततः संशयहेतु मानी जाय तो मृत शरीरमें चैतन्यकी निवृत्तिका सन्देह सदा बना रहेगा। ऐसी स्थितिमें मृत शरीरका दाह करना कठिन हो जायगा और दाह करनेवालोंको पातकी बनना पड़ेगा। बहुतसे अप्रत्यक्ष रोगादिके अभावका भी निर्णय देखाही जाता है। १. सपक्षेणैव साध्यस्य साधादित्यनेन हेतोस्त्र लक्षण्यमविरोधादित्यन्यथानुप
पत्तिं च दर्शयता केवलस्य त्रिलक्षणस्यासाधनत्वमुक्तं तत्पुत्रादिवत् । एकलक्षणस्यतु गमकत्वम् ।
अष्टश० अष्टस० पृ० २८९ २. प्रतिषेधसिद्विरपि यथोक्ताया एवानुपलब्धेः । सति वस्तुनि तस्या असंभवात् ।
___ न्यायबिन्दु पृ० ३२ ३. विप्रकृष्टविषयानुपालब्धिः प्रत्यक्षानुमाननिवृत्तिलक्षणा संशयहेतुः प्रमाणनिवृत्तावप्यर्थाभावासिद्धः।।
न्यायबिन्दु पृ० ४४ ४. अदृश्यानुपलम्भादभावासिद्धिरित्ययुक्तं परचैतन्यनिवृत्तावारेकापत्तेः, तत्संस्कतृणां पातकित्वप्रसङ्गात् । बहुलमप्रत्यक्षस्यापि रोगादेर्विनिवृत्तिनिर्णयात्।
अष्टश० अष्टस० पृ० ५२ अदृश्यपरचित्तादेरभावं लौकिका विदुः । तदाकार विकारादेरन्यथानुपपत्तितः ।। लघीयस्त्रय का० १५
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