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कारिका - ५६
तत्त्वदीपिका
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तत्त्व न सर्वथा नित्य है, और न सर्वथा अनित्य, किन्तु द्रव्यकी अपेक्षासे नित्य है, और पर्यायकी अपेक्षासे अनित्य है । प्रत्येक पदार्थ प्रत्यभिज्ञानका विषय होता है । पूर्वं और उत्तर पर्याय में रहने वाले एकत्व आदिको जानने वाले ज्ञानका नाम प्रत्यभिज्ञान है । प्रत्यभिज्ञान दो अवस्थानोंका संकलनरूप ज्ञान होता है । जिस पदार्थको पहले देखा हो उसको पुनः देखने पर 'यह वही देवदत्त है' इस प्रकारका जो ज्ञान होता है, वह प्रत्यभिज्ञान है । प्रत्यभिज्ञानके कारण प्रत्यक्ष और स्मृति हैं । प्रत्येक पदार्थ के विषय में जो 'यह वही है' इस प्रकारका प्रत्यभिज्ञान होता है उससे प्रतीत होता है कि प्रत्येक पदार्थ कथंचित् नित्य है । अन्यथा उसमें प्रत्यभिज्ञान कैसे होता । ऐसा नहीं है कि प्रत्यभिज्ञान अकस्मात् ही उत्पन्न हो जाता है । क्योंकि निर्बाधरूपसे प्रत्यभिज्ञान अनुभवमें आता है । जीवादि तत्त्वों में जो प्रत्यभिज्ञान होता है, उसमें किसी प्रमाणसे बाधा नहीं आती है । प्रत्यक्ष प्रत्यभिज्ञानके विषयका बाधक नहीं हो सकता है, क्योंकि वह केवल वर्तमान पर्यायको जानता है, अतीत पर्यायको नहीं । अनुमान भी बाधक नहीं है, क्योंकि वह अन्यव्यावृत्तिरूप सामान्यको विषय करता है, और हेतुसे उसकी उत्पत्ति होती है ।
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कुछ लोग कहते हैं कि स्मृति और प्रत्यक्षसे व्यतिरिक्त प्रत्यभिज्ञान नामका कोई पृथक् प्रमाण नहीं है । इसलिए प्रत्यभिज्ञानके द्वारा नित्यत्वकी सिद्धि करना युक्त नहीं है । उक्त कथन ठीक नहीं है । क्योंकि प्रत्यभिज्ञान एक स्वतन्त्र प्रमाण है, और उसका विषय भी किसी अन्य प्रमाणसे नहीं जाना जा सकता है । पूर्व और उत्तर अवस्थाओं में रहनेवाला एकत्व प्रत्यभिज्ञानका विषय होता है । ऐसे विषयको स्मृति नहीं जान सकती, क्योंकि वह केवल अतीत पर्यायको ही जानती है । प्रत्यक्ष भी केवल वर्तमान पर्यायको जानता है । इसलिए दोनों अवस्थाओंका संकलन करने वाला अन्य कोई ज्ञान नहीं है । प्रत्यभिज्ञान ही एक ऐसा ज्ञान है जो दोनों अवस्थाओंको जानता है । स्मृति और प्रत्यक्ष दोनों मिलकर प्रत्यभिज्ञानकी उत्पत्ति करते हैं । यदि प्रत्यभिज्ञानका विषय एकत्व यथार्थ न होता तो 'जिसको मैंने प्रातः देखा था उसका इस समय स्पर्श कर रहा हूँ' इस प्रकारके एकत्वको परामर्श करने वाला ज्ञान कैसे होता ? प्रातः देखने वाला जो व्यक्ति है, वही व्यक्ति सायंकाल स्पर्श करने वाला भी है । प्रत्यभिज्ञानमें प्रमाता भी एक होना चाहिए और प्रमेय भी एक होना चाहिए । यदि प्रमाता एक न हो तो प्रत्यभिज्ञान नहीं हो सकता है । प्रातः रामने देखा हो तो सायंकाल मोहनको प्रत्यभिज्ञान
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