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आप्तमीमांसा
[ परिच्छेद-५
कोई कर्म होता है, और कर्म कोई तभी होता है जब उसका कोई कर्ता होता है । यही बात प्रमाण- प्रमेय, धर्म-धर्मी आदिके विषयमें है ।
इसलिये धर्म, धर्मी आदिकी सत्ता ९ कथंचित् आपेक्षिक है, २. कथंचित् अनापेक्षिक है, ३. कथंचित् उभयरूप है । ४. कथंचित् अवक्तव्य है । ५ कथंचित् आपेक्षिक और अवक्तव्य है, ६. कथंचित् अनापेक्षिक और अवक्तव्य है, तथा ७. कथंचित् उभय और अवक्तव्य है । इस प्रकार धर्म-धर्मी आदिकी आपेक्षिक और अनापेक्षिक सत्ता के विषय में सत्त्व, असत्त्व आदि धर्मों की तरह सप्तभंगीकी प्रक्रियाको समझ लेना चाहिये ।
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