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कारिका-१०१] तत्त्वदीपिका
३१५ अप्रमाणता है, और प्रत्यक्षाभासमें भी कथंचित् प्रमाणता है । चक्ष इन्द्रियके द्वारा चन्द्र, सूर्य आदि का यथार्थ प्रत्यक्ष होता है, उस प्रत्यक्षके द्वारा यह भी प्रतीत होता है कि चन्द्र, सूर्य आदि हमारे निकट हैं। यहाँ चन्द्र, सूर्य आदिका प्रत्यक्ष तो सत्य है, किन्तु उनमें जो निकटताकी प्रतीति होती है, वह मिथ्या है । क्योंकि चन्द्र, सूर्य आदि प्रत्यक्षदर्शीसे बहुत दूर हैं। इसलिए चन्द्र, सूर्य आदिके प्रत्यक्षमें कुछ अंश अप्रमाणता का भी है। इसी प्रकार तिमिर आदि रोगवाले व्यक्तिको एक चन्द्रमें जो दो चन्द्र का ज्ञान होता है, वह प्रत्यक्षाभास माना जाता है। किन्तु यहाँ भी द्वित्वसंख्याका ज्ञान ही अप्रमाण है, चन्द्र का जो ज्ञान होता है वह तो प्रमाण ही है । उस ज्ञान का अपराध केवल इतना ही है कि उसने एक चन्द्रके स्थानमें दो चन्द्रमाओंको जान लिया। इसलिए प्रत्यक्षाभासमें भी कुछ अंश प्रमाणताका रहता है।
यहाँ एक शंका हो सकती है कि जब सब ज्ञान उभयात्मक (प्रमाण और अप्रमाणरूप) हैं तो किसीको प्रमाण और किसीको अप्रमाण क्यों कहा जाता है। इसका उत्तर यह है कि संवाद और विसंवादके प्रकर्षकी अपेक्षासे ज्ञानमें प्रमाण और अप्रमाण व्यवहार होता है । जिस ज्ञानमें संवादके अंश अधिक होते हैं और विसंवादके अंश कम होते हैं, उसको प्रमाण कहते हैं। और जिस ज्ञानमें विसंवादके अंश अधिक होते हैं और संवादके अंश कम होते हैं, उसकी अप्रमाण कहते हैं। जैसे कस्तूरीमें गन्ध गणकी अधिकता होनेसे उसको गन्ध द्रव्य कहते हैं। इसी प्रकार अनूमान, आगम आदि प्रमाणों एवं प्रमाणाभासोंको भी कथंचित् प्रमाण और कथंचित् अप्रमाण समझना चाहिए। जितने अंशमें वे तत्त्वकी प्रतिपत्ति करते हैं उतने अंशमें प्रमाण हैं, और शेष अंशमें अप्रमाण हैं। इस प्रकार अनेकान्त शासनमें सत्त्व, नित्यत्व आदि धर्मोकी तरह प्रमाण और अप्रमाणके विषयमें भी अनेकान्त है।
प्रमाण और अप्रमाणके विषयमें सर्वथा एकान्तकी कल्पना करने पर न तो अन्तरंग तत्त्वका संवेदन सिद्ध हो सकता है, और न बहिरंग तत्त्व का संवेदन । बौद्धमतमें अन्तरङ्ग तत्त्व (ज्ञान) अद्वय (ग्राह्यग्राहकाकार रहित) क्षणिक आदि स्वरूप माना गया है। किन्तु इस प्रकारके तत्त्वका ज्ञान ग्राह्यग्राहकरूप एवं अक्षणिकादिरूपसे होता है। इसलिए बौद्धदर्शनमें अन्तरंग तत्त्वका ज्ञान स्वसंवेदनकी अपेक्षासे प्रमाण होने पर भी ग्राह्यग्राहकाकार आदिकी अपेक्षासे अप्रमाण है। यदि अन्तरङ्ग तत्त्वका ज्ञान
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