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आप्तमीमांसा
[ परिच्छेद - १०
सम्पूर्ण तत्त्वोंके प्रकाशक स्याद्वाद और केवलज्ञानमें प्रत्यक्ष और परोक्षका भेद है । जो वस्तु दोनों ज्ञानोंमें से किसी भी ज्ञानका विषय नहीं होती है वह अवस्तु है ।
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स्याद्वाद और केवलज्ञान दोनों ही सम्पूर्ण अर्थोंको जानते हैं । उनमें अन्तर केवल यही है कि स्याद्वाद परोक्षरूपसे अर्थोंको जानता है, और केवलज्ञान प्रत्यक्षरूपसे उनको जानता है । उक्त कारिकामें स्याद्वादको श्रुतज्ञानका पर्यायवाची बतलाया गया है । जो सम्पूर्ण श्रुतका ज्ञाता हो जाता है वह श्रुतकेवली कहलाता है। श्रुतकेवली श्रुतज्ञानके द्वारा सम्पूर्ण पदार्थों को जानता है। श्रुतकेवली और केवलीमें ज्ञानको अपेक्षासे कोई भेद नहीं है । भेद केवल प्रत्यक्ष और परोक्षरूपसे जाननेका है । कारिकामें पहले स्याद्वाद शब्दका प्रयोग किया है और बाद में केवलज्ञान शब्द है । इससे प्रतीत होता है कि दोनोंमेंसे कोई एक ही पूज्य नहीं है । अर्थात् दोनों समान रूपसे पूज्य हैं । इसका कारण यह है कि दोनों परस्परहेतुक हैं। क्योंकि केवलज्ञानसे स्याद्वादकी उत्पत्ति होती है और स्याद्वादरूप आगमसे केवल ज्ञानकी उत्पत्ति होती है ।
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यहाँ कोई शंका कर सकता है कि स्याद्वाद सर्व तत्त्वोंका प्रकाशक कैसे हो सकता है । क्योंकि श्रुतज्ञान द्रव्योंकी सब पर्यायोंको नहीं जानता है । कहा भी है- 'मतिश्रुतयो निबन्धो द्रव्येष्वसर्व पर्यायेषु' मति और श्रुतज्ञान द्रव्योंकी कुछ पर्यायोंको हो जानते हैं, सबको नहीं । उक्त शंकाका उत्तर यह है कि यहाँ जो स्याद्वादको सर्वतत्त्वप्रकाशक बतलाया गया है, वह द्रव्यकी अपेक्षासे बतलाया गया है, पर्यायकी अपेक्षासे नहीं । जीवादि सात पदार्थोंका नाम तत्त्व है । 'जीवाजीवास्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्वम्' ऐसा सूत्रकारका वचन है । इन सात तत्त्वोंका प्रकाशन केवलज्ञानकी तरह स्याद्वाद भी करता है । जिस प्रकार केवली दूसरोंके लिए जीवादि तत्त्वोंका प्रतिपादन करता है, उसी प्रकार आगम भी करता है । उनमें इतनी विशेषता अवश्य है कि केवली अर्थोंको प्रत्यक्ष जानता है, और स्याद्वाद परोक्षरूपसे जानता है । तथा केवली सब तत्त्वोंकी सब पर्यायोंको जानता है, और स्याद्वाद सब तत्त्वोंकी कुछ पर्यायोंको जानता है । क्योंकि केवलज्ञान ही सब पर्यायोंको जाननेमें समर्थ है, वचन या अगम नहीं । केवली भी वचनोंके द्वारा सब पर्यायोंका प्रतिपादन नहीं कर सकते हैं, क्योंकि सब पर्यायें वचनके अगोचर हैं । इस प्रकार स्याद्वाद और केवल
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