Book Title: Aptamimansa Tattvadipika
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 455
________________ ३३८ आप्तमीमांसा [परिच्छेद-१० गौः' इस व्युत्पत्तिके अनुसार गायको भी गो शब्दसे तभी कहेंगे जब वह गमन कर रही हो, सोने या बैठनेके समय उसको गौ नहीं कहेंगे। इन सात नयोंमेंसे पूर्व-पूर्व नयोंका विषय महान् है, और उत्तरोत्तर नयोंका विषय अल्प है । अर्थात् नैगम नयके विषयसे संग्रह नयका विषय अल्प है, और संग्रह नयके विषयसे व्यवहार नयका विषय अल्प है। इसी प्रकार आगे भी समझ लेना चाहिए। एवंभूत नयके विषयसे समभिरूढ नयका विषय महान् है। और समभिरूढ नयके विषयसे शब्दनयका विषय महान् है। इसी प्रकार पूर्व पूर्व नयोंमें भी समझ लेना चाहिए। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि अनेकान्तात्मक वस्तूका ज्ञान प्रमाण है, और उसके एक धर्मका ज्ञान नय है। द्रव्यके स्वरूपको बतलानेके लिए आचार्य कहते हैं नयोपनयैकान्तानां त्रिकालानां समुच्चयः । अविभ्राड्भावसम्बन्धो द्रव्यमेकमनेकधा ।।१०७।। तीनों कालोंको विषय करने वाले नयों और उपनयोंके विषयभत . अनेक धर्मोके तादात्म्य सम्बन्धको प्राप्त समुदायका नाम द्रव्य है। द्रव्य एक भी है, और अनेक भी। नैगम आदि सात नय हैं, और इनके भेद, प्रभेदोंका नाम उपनय है । एक नय एक समयमें एक धर्मको विषय करता है। वस्तुमें अनन्त धर्म होते हैं। अतः अनन्त धर्मोकी अपेक्षासे नय भी अनन्त हो सकते हैं। नय वर्तमान कालवर्ती धर्मका ही ग्रहण नहीं करते हैं, किन्तु तीनों कालवर्ती धर्मोंका नयों द्वारा ग्रहण होता है। इसीलिए भूतप्रज्ञापन आदि भी नयके भेद बतलाये गये हैं। अतः नय और उपनयों द्वारा त्रिकालवर्ती अनन्त धर्मोका क्रमशः ग्रहण होता है। उन अनन्त धर्मों ( पर्यायविशेषों )के अविभक्त ( तादात्म्यसम्बन्धयुक्त ) समुदायका नाम द्रव्य है । 'गुणपर्ययवद् द्रव्यम्' 'जिसमें गुण और पर्यायें पायी जाँय वह द्रव्य है' तत्त्वार्थसूत्रकारका यह जो द्रव्यका लक्षण है, उसका इस लक्षणसे कोई विरोध नहीं है। किन्तु दोनों लक्षण एक हैं। गुण, और पर्याय वस्तुके धर्म हैं । प्रत्येक वस्तुमें अनन्त गुण और पर्याय पाये जाते हैं। गुण और पर्यायको छोड़कर द्रव्य कुछ भी शेष नहीं रहता है। अतः अनन्त धर्मों के समुदायका नाम द्रव्य है, अथवा गुण और पर्यायोंके समुदायका नाम द्रव्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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