Book Title: Aptamimansa Tattvadipika
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 451
________________ ३३४ आप्तमीमांसा [ परिच्छेद-१० तीन रूपोंमें अबाधितविषयत्व और असत्प्रतिपक्षत्व इन दो रूपोंको मिला देनेसे हेतुके पाँच रूप हो जाते हैं। नैयायिक पाञ्चरूप्यको हेतुका लक्षण मानते हैं। कई हेतुओंमें त्रैरूप्य अथवा पाञ्चरूप्य पाया जाता है। ‘पर्वतोऽयं वह्निमान् धूमवत्वात्', 'इस पर्वतमें अग्नि है, धूम होते से ।' यहाँ धूम हेतुमें त्रैरूप्यका सद्भाव है । पर्वतमें रहनेके कारण धूम पक्ष ( पर्वत ) का धर्म है। सपक्ष ( भोजनशाला) में भी उसका सत्त्व है। और विपक्ष (सरोवर ) से उसकी व्यावृत्ति ( अभाव ) है। किन्तु त्रैरूप्य हेतुका वास्तविक लक्षण नहीं हो सकता है। क्योंकि त्रैरूप्यको हेतूका लक्षण मानने में अव्याप्ति और अतिव्याप्ति दोष आते हैं । 'उदेष्यति शकटं कृत्तिकोदयात्' एक मुहूर्तके बाद शकट ( रोहिणी ) नक्षत्रका उदय होगा, क्योंकि इस समय कृत्तिका नक्षत्रका उदय है । यहाँ शकट पक्ष है, उसका उदय साध्य है और कृत्तिकोदय हेतु है। कृत्तिकोदय हेतु शकट ( पक्ष ) में नहीं रहता है। फिर भी ( पक्षधर्मत्वके अभावमें भी ) अपने साध्यकी सिद्धि करता है। यहाँ सपक्षसत्त्व और विपक्षव्यावृत्तिका कोई प्रश्न ही नहीं है। क्योंकि उक्त अनुमानमें न तो कोई सपक्ष है और न विपक्ष है। इससे सिद्ध होता है कि त्रैरूप्यके अभावमें भी हेतु साध्यका गमक होता है । अतः सब हेतुओंमें त्रैरूप्यके न होनेसे हेतुके लक्षणमें अव्याप्ति दोष आता है। इसी प्रकार अतिव्याप्ति दोष भी होता है। ___ 'गर्भस्थः मैत्रतनयः श्यामः तत्पुत्रत्वात् इतरपुत्रवत्' 'गर्भमें स्थित मैत्रका पुत्र श्याम है, मैत्रका पुत्र होनेसे, जैसे कि उसके दूसरे पुत्र ।' यहाँ तत्पुत्रत्व हेतुमें त्रैरूप्य रहने पर भी वह सम्यक् हेतु नहीं है, किन्तु हेत्वाभास है। क्योंकि तत्पुत्रत्व हेतुका श्यामत्व साध्यके साथ अविनाभाव सिद्ध नहीं होता है। श्यामत्व और मैत्रपुत्रत्वमें कार्य-कारण आदि कोई सम्बन्ध नहीं है। यतः हेत्वाभासमें भी त्रैरूप्य रहता है, अतः इसमें अतिव्याप्ति दोष है। इस प्रकार त्रैरूप्य हेतुका लक्षण सिद्ध नहीं होता है। और जब त्रैरूप्य हेतुका लक्षण नहीं है, तब पाञ्चरूप्य भी हेतुका लक्षण कैसे हो सकता है। ___ अतः अविनाभाव या अन्यथानुपपत्ति ही हेतुका वास्तविक लक्षण है। अविनाभावका अर्थ है-साध्यके विना हेतुका न होना। अन्यथानुपपत्तिका भी यही अर्थ है। साध्यके विना हेतुका न होना ही अन्यथानुपपत्ति है। त्रैरूप्य या पाञ्चरूप्यके होने पर भी अन्यथानुपपत्तिके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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