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कारिका-९७-९८] तत्त्वदीपिका
२९९ होने पर सुखकी प्राप्ति स्वयं सिद्ध है। इसी बातको इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि यदि अल्प ज्ञान हानिसे मोक्षकी प्राप्ति होती है, तो सम्पूर्ण ज्ञान हानिसे मोक्षको प्राप्ति नियमसे होगी। इस प्रकार अज्ञानसे बन्ध होता है, और अल्प ज्ञानसे मोक्ष होता है, ये दोनों एकान्त ठीक नहीं हैं।
उभयकान्त तथा अवाच्यतैकान्तका निराकरण करनेके लिए आचार्य कहते हैं
विरोधान्नोभयेकात्म्यं स्याद्वादन्यायविद्विषाम् ।
अवाच्यतैकान्तेऽप्युक्ति वाच्यमिति युज्यते ॥९७॥ स्याद्वादन्यायसे द्वेष रखनेवालोंके यहाँ विरोध आनेके कारण उभयैकान्त नहीं बन सकता है। और अवाच्यतैकान्तमें भी 'अवाच्य' शब्दका प्रयोग नहीं किया जा सकता है। ___ एक एकान्त यह है कि अज्ञानसे बन्ध होता है, और दूसरा एकान्त यह है कि अल्प ज्ञानसे मोक्ष होता है। ये दोनों एकान्त परस्परमें सर्वथा विरोधी हैं। यदि अज्ञानसे बन्ध होता है, तो अल्प ज्ञानसे मोक्ष नहीं हो सकता है, क्योंकि अल्प ज्ञानके होनेपर भी बहुत अज्ञान बना रहेगा, और बहुत अज्ञानके सद्भावमें बन्ध होता रहेगा। इस प्रकार मोक्ष कभी संभव न होगा। और यदि अल्प ज्ञानसे मोक्ष होता है, तो 'अज्ञानसे बन्ध होता है' इस कथनमें विरोध आता है। अल्प ज्ञानके होने पर भी बहुत अज्ञानका सद्भाव बना रहता है, फिर भी बन्धका न होना और मोक्षका हो जाना आश्चर्यजनक बात है। अतः दोनों एकान्त परस्परमें विरोधी होनेके कारण युक्तिसंगत नहीं हैं। बन्ध और मोक्षके विषयमें अवाच्यतैकान्त मानना भी ठीक नहीं है। क्योंकि अवाच्यतैकान्त पक्षमें अवाच्य शब्दका प्रयोग नहीं किया जा सकता है । अवाच्य शब्दके प्रयोगसे अवाच्यतैकान्तका त्याग हो जाता है, और तत्त्वमें अवाच्य शब्दका वाच्यत्व सिद्ध हो जाता है।
बन्ध और मोक्षके वास्तविक कारणोंको बतलानेके लिए आचार्य कहते हैं
अज्ञानान्मोहिनो बन्धो नाज्ञानाद् वीतमोहतः ।
ज्ञानस्तोकाच्च मोक्षः स्यादमोहान्मोहिनोऽन्यथा ॥९८॥ ... मोह सहित अज्ञानसे बन्ध होता है और मोह रहित अज्ञानसे बन्ध
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